विशेष रूप से महामारी के दौरान बच्चो की शिक्षा चुनौतीपूर्ण थी । बच्चों को इस नए और अनिश्चित वातावरण का सामना करने और उनके अनुकूल बनाने में मदद करने के लिए घर पर व्यस्त रखने की जिम्मेदारी को संतुलित करना एक कठिन कार्य था । कई माता-पिता बिना सहायता के एक संतुलन नहीं बना पा रहे थे । यह भी चुनौती थी कि बहुत से बच्चे कोविड के समय में प्रौद्योगिकी का उपयोग नहीं कर सकते थे और स्कूलों और आंगनवाड़ियों से दूर हैं (3 - 6 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए शिक्षण केंद्र)। छत्तीसगढ़ में अब लगभग 800,000 बच्चे हैं जो लॉकडाउन से पहले 50,000 से अधिक आंगनवाड़ियों में जाया करते थे। COVID-19 महामारी के कारण इन बच्चों को शिक्षा से हो रहे थे क्योंकि उनके शिक्षण केंद्र बंद थे ।
एक महीने से अधिक समय हो गया था बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे थे और संभावना था कि अगले कुछ महीनों तक लॉकडाउन जारी रहेगा।जब वापस लौटने का समय होगा, तो स्कूलों, प्री-स्कूलों और आंगनवाड़ियों में परिवर्तन कई बच्चों के लिए चुनौती बन सकता थी ।यही कारण है कि बच्चों को घर पर व्यस्त रखना और पढ़ाना आवश्यक था । यह उन्हें महामारी के तनाव को बेहतर ढंग से संभालने और आत्मविश्वास के साथ अपने स्कूलों और आंगनवाड़ियों में फिर से जाने के लिए तैयार करने में मदद करने का प्रयास था ।
बच्चों की शिक्षा की जरूरतों को पूरा करने के लिए और COVID-19 की प्रतिक्रिया के हिस्से के रूप में, जोहर पहुना फाउंडेशन बच्चों को घर पर व्यस्त रखने और पढ़ाई करने के लिए माता-पिता और दादा दादी की सहायता करने के लिए एक अभियान शुरू किया ।अभियान हर घर शिक्षा का परिचालन का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना था कि सभी क्षेत्रों के बच्चों के पास प्रौद्योगिकी तक पहुंच के बावजूद शिक्षा की पहुंच हो। जोहार पहुना फाउंडेशन द्वारा स्वयंसेवकों को घर पर रहते हुए अपने बच्चों की शिक्षा के साथ माता-पिता और देखभाल करने वालों की मदद करने के लिए कार्यक्रम शुरू किया। ऑनलाइन-ऑफ़ लाइन एवं मोहल्ला कक्षाओं की मदद से हम बच्चों तक अपनी पहुँच बनाने में सफल हुए l
इस कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिला के दुर्ग एवं धमधा ब्लाक के 200 प्राथमिक स्कूल के 2800 बच्चे और 120 आगनबाडी के 1234 बच्चो के साथ कार्य किया गया l 65 वालंटियर द्वारा कोविड – 19 में इस कार्यक्रम के साथ जुड़कर अपना बहुमूल्य समय दिया l जिनके लिए उन्हें प्रसंसा पत्र प्रदान कर सम्मनित किया गया l